संविधान एक परिचय
- Constitution मुख्यत: लेटिन भाषा का शब्द है जिसका आशय है ''महत्वपूर्ण विधि''। संविधान की परिभाषा ''संविधान वह बुनियादी नियमों का संग्रह है जिसके अनुसार किसी देश के शासन का संचालन होता है।''
- ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर साधारणत: बेबीलोनिया हम्मूराबी संहिता को संविधान की उत्पत्ति का महत्वपूर्ण स्त्रोत माना गया है।
- आधुनिक संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण स्त्रोत 1776 का अमेरिकी संविधान है। अमेरिकी संविधान को आधुनिक युग का पहला लिखित संविधान माना गया है।
- साधारणत: संविधान को किसी राज्यव्यवस्था व शासन व्यवस्था के लिए नियमों के लिए नियमों व मार्गदर्शनों का एक लिखित दस्तावेज माना गया है।
- इग्लैण्ड का संविधान अलिखित संविधान है। इसलिए इग्लैण्ड के संविधान को 'संयोग और बुद्धिमत्ता का शिशु' कहा गया है।
- संवैधानिक सरकार : संवैधानिक सरकार वह होती है जो संविधान के उपबन्धों के अनुसार संगठित, सीमित और संचालित होती है अर्थात् संवैधानिक सरकार से आशय सीमित सरकार से है। एक ऐसी सरकार जो कानून द्वारा नियमित व संचालित होती है, किसी व्यक्ति की इच्छाओं द्वारा नहीं।
भारतीय संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- 31 दिसम्बर 1600 में अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में व्यापार करने के लिए आई। ईस्ट इण्डिया कम्पनी धीरे – धीरे यहां के शासक बन बैठे।
- 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद कंपनी को दिवानी और राजस्व अधिकार प्राप्त हो गए। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा व्यवस्थित शासन की शुरूआत 1773 रेग्यूलेटिंग एक्ट से की गई। इसके प्रमुख प्रावधान निम्न हैं –
1773 का रेग्यूलेटिंग एक्ट
- ब्रिटिश क्राउन का कम्पनी पर संसदीय नियन्त्रण लाया गया। कंपनी के शासन पर ब्रिटिश संसद द्वारा निर्मित कानून लागू होने लगे।
- बंगाल के गर्वनर वारेन-हेस्टिंग्स को गर्वनर जनरल बना दिया गया। मद्रास व बम्बई के गर्वनर इसके अधीन रखे गए। इससे पहले ये तीनों प्रेसीडेन्सियां अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र थी।
- गर्वनर जनरल की सहायता के लिए 4 सदस्यीय कार्यकारिणी बनाई गई। जिसके सारे निर्णय बहुमत से लिए जाते थे।
- कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायलय की स्थापना सन् 1774 में की गई। जिसमें मुख्य न्यायाधीश हाइट चैम्बर और लिमेस्टर को रखा गया। इसके विरूद्ध अपील लंदन की प्रिंवी काउंसिल में की जा सकती थी।
- शासन चलाने हेतु बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर बनाए गए।
- व्यापार की सभी सूचनाएं क्राउन को देना सुनिश्चित किया।
- बोर्ड ऑफ डायरेक्टर को यह निर्देश दिया गया कि वह प्रतिवर्ष अपने वार्षिक आमदनी और खर्च का ब्यौरा ब्रिटिश संसद के समक्ष प्रस्तुत करें।
1784 का पिट्स इण्डिया एक्ट
- गर्वनर जनरल की कार्यकारिणी में से 1 सदस्य घटाकर सदस्य संख्या 3 कर दी गई।
- कम्पनी के व्यापारिक व राजनैतिक कार्य अलग-अलग किये गए।
- इस एक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारम्भ हुआ।
- व्यापारिक कार्य बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के तथा राजनैतिक कार्य बोर्ड ऑफ कन्ट्रोलर के अधीन रखे गए।
1793 का चार्टर अधिनियम
- इस समय कंपनी का शासन ठीक था। इसलिए 20 वर्ष आगे बढ़ा दिया गया।
- नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतनादि को भारतीय राजस्व में से देने की व्यवस्था की गयी।
1813 का चार्टर अधिनियम
- कम्पनी पर शासन का भार अधिक होने के कारण व्यापार का क्षेत्र सभी लोगो के लिए खोल दिए गए। लेकिन बोर्ड ऑफ कंट्रोल से अनुमित अनिवार्य।
- अपवाद : कंपनी का चीन के साथ चाय के व्यापार पर एकाधिकार बना रहा।
- ईसाई मिशनरियों को भारत में इसाई धर्म के प्रचार की अनुमति दी गई।
- 1 लाख रूपये प्रतिवर्ष ब्रिटिश अधिकृत क्षेत्र में शिक्षा पर खर्च करने का प्रावधान किया गया।
1833 का चार्टर अधिनियम
- गवर्नर जनरल को गर्वनर जनरल ऑफ इण्डिया बना दिया गया।
- पहले गर्वनर जनरल ऑफ इण्डिया विलियम बैटिंग बने।
- इस एक्ट के द्वारा कंपनी के व्यापारिक अधिकार समाप्त कर दिए गए, कंपनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया।
- टी. बी. मैकाले को विधि सदस्य के रूप में जोड़ा गया। जिसे कार्यकारिणी में मत देने का अधिकार नहीं था। कार्यकारिणी में सदस्य संख्या पुन: 4 हो गई।
- मैकाले कमीशन की सिफारिशों के आधार पर भारत में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बनाया तथा सरकारी नौकरीयों में भेदभाव निषेधित किया गया।
- प्रथम बार कानून के समक्ष समानता का अधिकार भारतीयों के लिए आया एवं ब्रिटिश संसद ने मानवीय पक्ष में दास प्रथा की समाप्ति की घोषणा की।
- इसमें सती प्रथा, दास प्रथा और कन्यावध को अवैध घोषित किया गया।
1853 का चार्टर अधिनियम
- बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में सदस्यों की संख्या बढाई गई।
- पी. डब्यु. डी. तथा सार्वजनिक निर्माण विभाग बनाया गया।
- सिविल सेवकों की खुली भर्ती परिक्षा आयोजित करने का प्रावधान।
- इस एक्ट के तहत परीक्षा का आयोजन बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल करेगा।
- इस भर्ती परीक्षा के लिए 1854 में मैकाले समिति की नियुक्ति की गई।
1858 का अधिनियम
- 1857 की क्रांति के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन समाप्त कर भारत का शासन सीधे ब्रिटिश ताज के अधीन किया गया।
- कंपनी के शासन के अन्त की आधिकारिक घोषणा ब्रिटिश संसद द्वारा पारित विक्टोरिया घोषणा पत्र 1858 के द्वारा की गई।
- गर्वनर जनरल ऑफ इण्डिया को वायसराय की पदवी दी गई। लार्ड कैनिन पहले वायसराय बने।
- एक भारत-सचिव का पद सृजित किया गया। जिसकी कार्यकारिणी में 15 सदस्य रखे गए, 7 मनोनित और 8 निर्वाचित। इसे भारत परिषद् कहा गया।
- बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर्स एवं बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल को समाप्त कर दिया गया।
- भारत सचिव चार्ल्स वुड को बनाया गया। इन्होंने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए वुड डिस्पेच दिया जिसमें प्राथमिक प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में देना निर्धारित था। इसलिए वुड डिस्पेच को "शिक्षा का मैग्नाकार्टा" कहा जाता है।
- बम्बई, कलकत्ता और मद्रास में विश्व विद्यालयों की स्थापना की गई।
1861 का भारत शासन अधिनियम
- भारत की राजधानी कलकत्ता में केन्द्रीय विधान परिषद बनाई गई।
- वायसराय या गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में पांचवा सदस्य विधि सदस्य के रूप में सम्मिलित किया गया एवं गवर्नर जनरल को अधिकार दिया की वह परिषद् में कम से कम 6 व अधिकतम 12 गैर सरकारी सदस्यों को नामांकित करें।
- बम्बई, मद्रास, और कलकत्ता में हाईकोर्ट की स्थापना का प्रावधान किया।
- गवर्नर जनरल को अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया। अध्यादेश 6 माह से अधिक लागू नहीं रह सकता था। विधेयक पर वीटो की शक्ति प्रदान की गई।
- विभागीय वितरण प्रणाली लागू की गई। (लार्ड कैनिंग के द्वारा)
1892 का भारत – परिषद अधिनियम
- 1885 में कांग्रेस की स्थापना के बाद सुधार की मांगे निरन्तर तीव्र होती चली गई।
- अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्वति को प्रारम्भ किया गया अर्थात् बड़े उद्योगपति, जमीदार और व्यापारी गैर सरकारी सीटों के लिए चुनाव लड़ सकते थे।
- बजट पर बहस करने का अधिकार दिया गया। लेकिन मत देने का अधिकार नहीं था।
- सदस्यों को बजट पर विचार-विमर्श की अनुमति किन्तु कटौति प्रस्ताव पेश करने का अधिकार नहीं।
भारत शासन अधिनियम 1909 (मार्लेमिन्टो सुधार अधिनियम)
- जोन मार्ले भारत सचिव और लार्ड मिन्टो वायसराय थे।
- मुस्लिम समुदाय को पृथक् निर्वाचन क्षेत्र उपबन्ध किया गया।
- लार्ड मार्ले को साम्प्रदायिक निर्वाचन का जनक कहा जाता है।
- एस. पी. सिन्हा को वायसराय या गर्वनर-जनरल की कार्यकारिणी में शामिल किया गया।
- यह अधिनियम अंग्रेजों की 'फूट डालो और राज करो' की नीति को चरितार्थ करता है। लार्ड मार्ले ने वायसराय मिण्टो से कहा था, कि ''याद रखना कि पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाकर हम ऐसे घातक विष के बीज बो रहे हैं जिनकी फसल बड़ी कड़वी होगी।''
- के. एम. मुंशी के अनुसार, ''इन्होंने उभरते हुए प्रजातंत्र को मार डाला।''
1919 का भारत शासन अधिनियम
- इसे मान्टेस्क्यू चेम्सफोर्ड सुधार कानून भी कहा गया। इसकी घोषणा 20 अगस्त 1917 से प्रारम्भ की गई। जिसके प्रावधान निम्नलिखित थे-
- प्रान्तों में द्वैध शासन प्रारम्भ।
- द्वैध शासन के जनक – लियोनिल कार्टिस थे।
- विषयों का प्रारूप 2 भागों में बांटा गया – 1.आरक्षित 2. हस्तांनान्तरित
- आरक्षित विषयों पर गवर्नर जनरल और उसकी कार्यकारिणी का शासन था। जो किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं थी। इसमें प्रमुख विषय – रक्षा, वित, जेल, पुलिस, विदेशी संबंध, ईसाईयों के कानून, अंग्रेजी शिक्षा, सिंचाई आदि रखे गये। हस्तांतरित विषय, जैसे – स्थानीय शासन, मनोरंजन, कृषि, सहकारिता और पर्यटन।
- द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई० के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया।
- भारत में द्विसदनीय विधायिका बनाई गई जिसका एक सदन केन्द्रीय विघानसभा जिसमें 104 निर्वाचित 41 मनोनित सदस्य थे। तथा दुसरा सदन राज्य परिषद रखा गया।जिसकी सदस्या संख्या 60 रखी गई। इसमें भी मनोनित 27 एवं निर्वाचित 33 सदस्य थे।
- ब्रिटेन में एक हाईकमिश्नर का पर सृजित किया गया। राष्ट्रमंडल देशों के साथ मिलकर कमिश्नर की नियुक्ति की जाती है। भारत इसका सदस्य गई 1949 में बना।
- फेडरल लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
- महिलाओं को सिमित क्षेत्रों में मतदान डालनें का अधिकार दिया गया।
- साम्प्रदायिक निर्वाचन का विस्तार किया गया।
- यह अधिनियम 1 अप्रैल 1921 से प्रारम्भ हुआ और 1 अप्रैल 1937 तक रहा। बालगंगाधर तिलक ने इसे "एक बिना सूरज का अंधेरा" कहा।
- इसकी समीक्षा के लिए 10 साल बाद एक रॉयल कमीशन के गठन का प्रावधान किया।
1935 का भारत शासन अधिनियम
- 1935 ई० के अधिनियम में 451 धाराएं और 15 परिशिष्ट थे।
- यह अधिनियम 1928 की नेहरू रिपोर्ट, 1929 लाहौर अधिवेशन (पुर्ण स्वराज्य की मांग) एवं 1930, 31 एवं 32 – तीन गोलमेज सम्मेलन इन सभी को ध्यान में रखते हुए 1935 का भारत शासन अधिनियम लाया गया।
- इसकी प्रमुख विशेषतांए निम्न है-
- इसमें प्रस्तावना का अभाव था।
- प्रान्तों में द्वैध शासन हटाकर केन्द्र में लगाया गया।
- केन्द्र एंव राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन तीन सुचियों में किया गया।
(A) केन्द्र सूची(97) (B) राज्य सूची(66) (C)समवर्ती सूची(47)
- फेडरल सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई। जो अपील का सर्वोच्च न्यायालय नहीं था। इसके विरूद्ध अपील लंदन की प्रिवी कांउसिल में सम्भव थी।
- रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की स्थापना का प्रावधान किया गया।
- उत्तरदायी शासन का विकास किया गया।
- अखिल भारतीय संघ की स्थापना का प्रावधान था। जिसमें देशी रियासतों का मिलना ऐच्छिक रखा गया। केन्द्रीय एवं राज्य विधायिकाओं का विस्तार किया गया।
- पं. जवाहर लाल नेहरू ने इस अधिनियम को एक ऐसी मोटर कार की संज्ञा दी "जिसमें ब्रैक अनेक है लेकिन इंजिन नहीं।"
- इसका लगभग 2/3 भाग आगे चलकर संविधान में रखा गया।
- यह अधिनियम अन्य अधिनियमों की तुलना में महत्वपूर्ण रहा।
- ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता : इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था। प्रांतीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिका इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे।
- भारत परिषद का अंत : इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद का अंत कर दिया गया।
- सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार : संघीय तथा प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं में विभिन्न सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और उसका विस्तार आंग्ल भारतीयों, भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों और हरिजनों के लिए भी किया गया
- इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया, अदन को इंग्लैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया गया।