Dungarpur District GK in Hindi

डूँगरपुर जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)

Dungarpur District GK in Hindi / Dungarpur Jila Darshan

बांसवाड़ा व डूँगरपुर के मध्य के भू-भाग को मेवल नाम से जाना जाता है।

डूंगरपुर को पहाड़ों की नगरी उपनाम से भी जाना जाता है।

डूंगरपुर का क्षेत्रफल – 3,770 वर्ग किलोमीटर है।

नगरीय क्षेत्रफल 31.27 वर्ग किलोमीटर तथा ग्रामीण क्षेत्रफल – 3,738.73 वर्ग किलोमीटर है।

डूंगरपुर में कुल वन क्षेत्रफल – 646.82 वर्ग किलोमीटर है।

डूंगरपुर में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 4 है, जो निम्न है →

1. डूंगरपुर                 2. आसपुर

3. सागवाड़ा              4. चौरासी

डूंगरपुर में उपखण्डों की संख्या – 3

डूंगरपुर में तहसीलों की संख्या – 3

डूंगरपुर में उपतहसीलों की संख्या – 2

डूंगरपुर में ग्रामपंचायतों की संख्या – 188

सन् 2011 की जनगणना के अनुसार डूंगरपुर जिले की जनसंख्या के आंकड़ें →

कुल जनसंख्या—13,88,552             पुरुष—6,96,532

स्त्री—6,92,020                               दशकीय वृद्धि दर—25.4%

लिंगानुपात—994                            जनसंख्या घनत्व—368

साक्षरता दर—59.5%                      पुरुष साक्षरता—72.9%

महिला साक्षरता—46.2%

राजस्था.न में सर्वाधिक अनुकूल लिंगानुपात वाला जिला डूंगरपुर है, यहां प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्याल 990 है।

डूंगरपुर में कुल पशुधन – 10,89,600 (LIVESTOCK CENSUS 2012)

डूंगरपुर में कुल पशु घनत्व – 289 (LIVESTOCK DENSITY(PER SQ. KM.))

डूंगरपुर की स्थापना – सन् 1356 ई. में रावल उदयसिंह (रावल वीरसिंह) के द्वारा की गई। रावल उदयसिंह के शासन काल में वर्तमान डूंगरपुर व बांसवाड़ा एक ही थे। रावल उदयसिंह ने अपने जीवन काल में ही अपने दोनों पुत्रों में बंटवारा कर पश्चिमी हिस्सा। जो वर्तमान में डूंगरपुर है, अपने बड़े पुत्र पृथ्वीराज को तथा पूर्वी हिस्सा जो वर्तमान में बांसवाड़ा है को अपने छोटे पुत्र जगमान को दे दिया था। डूंगपुर व बांसवाड़ा को वागड़ प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है।

डूंगरपुर में बहने वाली नदियां →

माही नदी – उद्गम-मध्यप्रदेश में विन्ध्याचल की महू पहाडिय़ाँ। यह बाँसवाड़ा के खांदू ग्राम से राजस्थान में प्रवेश करती है। माही नदी को बागड़ की स्वर्ण रेखा, कांठल की गंगा आदि उपनामों से जाना जाता है। माही नदी राजस्थान की एकमात्र ऐसी नदी है जो राजस्थान में दक्षिण से प्रवेश करती है तथा वापस दक्षिण में निकलती है। माही नदी कर्क रेखा को 2 बार काटती है। माही नदी डूंगरपुर और बांसवाड़ा के बीच सीमा बनाती है। दक्षिणी राजस्थान में माही नदी के अपवाह क्षेत्र को छप्पंन का मैदान कहते हैं। बेणेश्वरर धाम (नवाटापुरा गांव, डूंगरपुर) के पास माही नदी में सोम व जाखम नदियां आकर मिलती है। बेणेश्वार धाम राजस्थान का सबसे बड़ा त्रिवेणी संगम है, जिसे आदिवासियों का कुंभ कहते हैं। बेणेश्वर धाम पर प्रतिवर्ष माघ मास की पूर्णिमा को विशाल मेला लगता है।

सोम नदी – सोम नदी का उद्गम ऋषभदेव के पास स्थित बिछामेंड़ा की पहाड़ियों (उदयपुर) से होता है। सोम नदी बेणेश्वषर (डूंगरपुर) में माही नदी में मिल जाती है। सोम नदी उदयपुर और डूंगरपुर के बीच सीमा बनाती है। सोम-कमला-अम्बा सिंचाई परियोजना डूंगरपुर में सोम नदी पर है।

जाखम नदी – इस नदी का उद्गम छोटी सादड़ी तहसील (प्रतापगढ़) के निकट भंवरमाला की पहाड़ियों से होता है। यह नदी डूंगरपुर जिले में बेणेश्वर धाम में माही नदी में मिल जाती है।

गैव सागर-गोपीनाथ ने इसका निर्माण करवाया। इसे ‘एडवर्ड सागर बाँध’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके पास ‘पुंजराज’ ने बादल महल बनवाया।

डूंगरपुर में मिलने वाले खनिज –

डूंगरपुर में पारेवा पत्थर निकलता है। पारेवा पत्थर के लिए डूंगरपुर प्रसिद्ध है।

लौहा-तलवारा (डूँगरपुर)

सीसा-जस्ता-घुंघराव मांडो

फ्लोराइट-मांडों की पाल

संगमरमर-नवागाँव

हरा ग्रेनाइट-डूँगरपुर

फ्लोर्सपार बेनीफिशियल संयंत्र—मांडों की पाल (डूँगरपुर)

अन्य खनिजों में – सोना, वोलस्टोनाइट तथा यूरेनियम के भंडार भी डूंगरपुर में मिले हैं।

डूंगरपुर के ऐतिहासिक स्थल एवं मंदिर →

संत मावजी का मंदिर—साबला गांव में, इनको कृष्ण का कलयुगी अवतार माना जाता है, इस मंदिर में ‘निष्कलंक मावजी’ की मूर्ति है। इन्होंने बेणेश्वर धाम की स्थापना की। संत मावजी द्वारा वागड़ी भाषा में लिखे गये उपदेश ‘चौपड़ा’ कहलाते हैं। मावजी ने ‘निष्कलंक सम्प्रदाय’ की स्थापना की, जिसकी प्रधान पीठ साबला में माही नदी के किनारे है। इन्हें विष्णु का कल्की अवतार भी माना जाता है।

सैय्यद फखरुद्दीन की दरगाह—गलिया कोट, डूँगरपुर में माही नदी के किनारे स्थित यह दरगाह ”दाउदी बोहरा” सम्प्रदाय का प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहाँ मोहर्रम के 27 वें दिन उर्स भरता है।

बेणेश्वर मेला—मैडेश्वर, नवाटापुरा, आशपुर तहसील। बेणेश्वर का अर्थ ‘डेल्टा की मल्लिका’। यह मेला सोम, माही, जाखम नदियों के त्रिवेणी संगम पर भरता है। इस मेले को आदिवासियों /भीलों/वागड़ का कुम्भ कहते हैं। इस मेले में आदिवासी (भील) अपने पूर्वजों की अस्थियों का विसर्जन करते है। भील जाति के लोग बेणेश्वर मेले में अपना जीवन साथी चुनते हैं। इस मेले को ‘भीलों का पुष्कर’ भी कहा जाता है। यह मेला माघ पूर्णिमा को भरता है। यहाँ पर विश्व का एकमात्र 5 स्थानों से खण्डित शिवलिंग है तथा यहाँ मूर्ति को पुजारी के अलावा कोई भी छू नहीं सकते है।

देव सोमनाथ मंदिर—सफेद पत्थरों से निर्मित देव सोमनाथ मंदिर डूँगरपुर में है। इस मंदिर के निर्माण में कहीं भी चूने का प्रयोग नहीं हुआ है केवल पत्थरों से चुनकर बनाया गया है।

स्थापक का पत्थर मन्दिर—यहाँ पर पत्थरों की पूजा होती है।

जैन मन्दिर—डूँगरपुर के मुख्य बाजार में भगवान आदिनाथ का मन्दिर, नेमीनाथ स्वामी का डंडा मंदिर एवं मामा-भान्जा का मन्दिर है।

डूँगरपुर के खरदड़ा गाँव में क्षेत्रपाल का प्रसिद्ध मंदिर है।

धनमाता व कालीमाता का मन्दिर-डूँगरपुर में है।

एक थम्बिया महल—डूँगरपुर में है जिसका निर्माण महारावल शिवसिंह ने 1730 से 1785 ई. के बीच अपनी राजमाता ज्ञान कुँवरी की स्मृति में करवाया।

जूना महल डूँगरपुर में है, इसकी स्थापना वीरसिंह ने विक्रम संवत् 1939 में ।

डूंगरपुर के प्रसिद्ध व्यक्तित्व →

भोगीलाल पाण्ड्या—‘वागड़ के गाँधी’ के नाम से प्रसिद्ध इनका जन्म 13 नवम्बर, 1904 को डूंगरपुर के सीमलवाड़ा गांव में हुआ। इन्होंने ‘वागड़ सेवा मंदिर’ व डूँगरपुर प्रजामण्डल (1944 में) की स्थापना की।

डॉ. नगेन्द्र सिंह—जन्म 18 मार्च 1914 में। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय, हेग में दो बार न्यायाधीश रहे। नगेन्द्र सिंह ने ‘द थ्योरी ऑफ फोर्स हिन्दू पॉलिटी’ पुस्तक की रचना की। भारत सरकार ने 1973 में इन्हें ”पद्म विभूषण” से सम्मानित किया।

महारावल लक्ष्मण सिंह—राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके लक्ष्मण सिंह एक शिकारी के रूप में इनका नाम ”गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड्” रिकार्ड में दर्ज है, अफ्रीका के जंगलों में शिकार के लिये जाते थे। लक्ष्मरण सिंह राजपूताना क्रिकेट टीम के कप्ताकन भी रहें थे।

गवरी बाई—कृष्ण भक्ति के कारण इन्हें ”वागड़ की मीरां” कहा जाता है। इनका जन्म डूँगरपुर के ब्राह्मण (नागर) परिवार में हुआ इन्होंने कीर्तनमाला नामक ग्रन्थ की रचना की। डूंगरपुर के महारावल शिवसिंह ने गवरी बाई के प्रति श्रद्धास्वरूप ”बालमुकुंद मंदिर” बनवाया।

कालीबाई—रास्तापाल (डूँगरपुर) में अपने गुरु नानाभाई खांट को बचाने हेतु 12 वर्ष की आयु में जून, 1947 को शहीद हो गई। इनका दाह संस्कार सुरपुर ग्राम (गैब सागर बांध के पास) में किया। राजस्थान की सबसे कम उम्र की महिला स्वतन्त्रता सेनानी-काली बाई ही थी। रास्ताेपाल ग्राम की पाठशाला में हुये हत्यारकांड में पाठशाला संरक्षक नानाभाई खांट, अध्या।पक सेंगाभाई तथा भील बालिका काली बाई शहीद हो गए।

डूँगरपुर जिले के महत्त्वपूर्ण तथ्य →

डूँगरपुर को पहाड़ों की नगरी कहा जाता है। राजस्थान निर्माण के समय यह राजस्थान का सबसे-छोटा जिला था।

वागड़ की राजधानी-बड़ौदा (प्राचीन काल)। बड़ौदा गांव में सम्वत् 1349 का महाराजा वीरसिंह देव के समय का एक शिलालेख लगा हुआ है।

डूँगरपुर को राष्ट्रीय बागवानी मिशन में शामिल किया गया है।

डूँगरपुर कलेक्ट्रेट परिसर में राज्य में पहली बार ‘ड्रेस कोड’ शुरू किया गया है।

बरबूदानियाँ—यहाँ देश का तीसरा एवम् जनजाति क्षेत्रों में देश का प्रथम महिला सहकारी मिनी बैंक स्थापित किया।

वनों को बढ़ावा देने के लिए 1986 में राजीव गाँधी ने रूख भायला कार्यक्रम की शुरूआत डूँगरपुर से की। रूख भायला का अर्थ-वृक्ष मित्र होता है।

भारत सरकार ने सर्वें में 150 पिछड़े जिलों की पहचान की गई, जिसमें डूँगरपुर भी शामिल है।

रमकड़ा उद्योग – गलियाकोट, डूँगरपुर में स्थित इन उद्योगों में सोप स्टोeन के कलात्म”क खिलौनों का निर्माण किया जाता है।

महुआ का पेड़ – आदिवासियों के लिए वरदान है, इस पेड़ से महुड़ी शराब बनाते हैं।

बाँसवाड़ा-डूँगरपुर-रतलाम – रेलवे लाइन का शुभारम्भ 3 जून, 2011 को सोनिया गाँधी ने डूँगरपुर में किया।

राज्य का प्रथम पूर्ण आदिवासी साक्षर जिला-डूँगरपुर।

राज्य सरकार ने कालीबाई के सम्मान में काली बाई महिला साक्षरता उन्नयन पुरस्कार चालू कर रखा है।

राजस्थान में डामोर जनजाति सर्वाधिक सीमलवाड़ा (डूँगरपुर) में निवास करती है। यह जनजाति एक मात्र ऐसी जनजाति है जो वनों पर आश्रित नहीं है।

राजस्थान के जिलों का सामान्य (General Knowledge of Rajasthan in Hindi) / डूंगरपुर जिले का सामान्य ज्ञान –

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