प्रतापगढ़ जिला दर्शन (राजस्थान के जिले)
Pratapgarh District GK in Hindi / Pratapgarh Jila Darshan
प्रतापगढ़ एक नजर →
प्रतापगढ़ जिले का कुल क्षेत्रफल – 4117.65 वर्ग किलोमीटर
प्रतापगढ़ जिले की मानचित्र स्थिति – 23°40′ से 24°5′ उत्तरी अक्षांश तथा 74°10′ से 74°94′ पूर्वी देशान्तर है।
प्रतापगढ़ के क्षेत्र को काँठल प्रदेश के नाम से जाना जाता है।
प्रतापगढ़ जिले में विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 2 है, जो निम्न है —
1. प्रतापगढ़, 2. धरिवाद
उपखण्डों की संख्या – 4 (प्रतापगढ़, अरनोद, छोटी सादड़ी एवं धरियावाद)
तहसीलों की संख्या – 5 (प्रतापगढ़, अरनोद, छोटी सादड़ी, धरियावाद एवं पीपलखूंट)
पंचायत समितियों की संख्या – 5
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार प्रतापगढ़ जिले की जनसंख्या के आंकड़ें निम्नानुसार है —
कुल जनसंख्या—8,67,848
पुरुष—4,37,744; स्त्री—4,30,104
दशकीय वृद्धि दर—22.8%; लिंगानुपात—983
जनसंख्या घनत्व—195; साक्षरता दर—56%
पुरुष साक्षरता—69.5%; महिला साक्षरता—42.4%
प्रतापगढ़ जिले में कुल पशुधन – 7,65,557 (LIVESTOCK CENSUS 2012)
प्रतापगढ़ जिले का ऐतिहासिक विवरण —
प्रतापगढ़ पर लगभग आठ सौ सालों तक सिसोदिया वंश के शासकों का शासन रहा है। इसी वंश के शासक क्षेमकरण के पुत्र राजकुमार सूरजमल 1514 ई. में देवगढ़ का शासक बना। इस शासन को कालान्तर में प्रतापगढ़ के नाम से जाना गया।
प्रतापसिंह ने 1699 ई. में देवगढ़ के समीप प्रतापगढ़ कस्बे की स्थापना की। कालान्तर में प्रतापगढ़ देवगढ़ की राजधानी बना था।
प्रतापगढ़ राजस्थान का सबसे नवीन जिला 33वाँ। प्रतापगढ़ का गठन 26 जनवरी, 2008 को हुआ तथा इस नये जिले ने 1 अप्रैल, 2008 से कार्य आरम्भ किया। प्रतापगढ़ को 33वाँ जिला बनाने की सिफारिश परमेशचन्द्र समिति ने की।
चित्तौडग़ढ़ से—प्रतापगढ़, अरनोद, छोटी सादड़ी। उदयपुर से—धारियावाद तथा बाँसवाड़ा से—पीपलखूँट।
प्रतापगढ़ जिले को उदयपुर संभाग में सम्मलित किया है। राजस्थान परिवहन विभाग द्वारा प्रतापगढ़ जिले में पंजीकृत होने वाले वाहनों के कोड RJ-35 जारी किया गया है। यह जिला राजस्थान का दूसरा सबसे ऊँचा बसा हुआ स्थान है। इसमें औसत वार्षिक वर्षा लगभग 90 से.मी. होती है तथा इस जिले की मुख्य फसलें गेहूं एवं मक्का है।
प्रतापगढ़ जिले में बहने वाली नदियाँ —
जाखम नदी—जाखम नदी का उद्गम प्रतापगढ़ के छोटी सादड़ी में स्थित भंवरमाता की पहाडिय़ों से होता है। राजस्थान का सबसे ऊँचा बाँध (81 मी.) जाखम बाँध (अनूपपुरा) है। यह नदी धरियावद में सोम नदी में मिल जाती है।
ऐराव नदी—इसका उद्गम प्रतापगढ़ की पहाडिय़ों से होता है।
प्रतापगढ़ जिले में अन्य बहने वाली नदियाँ —सूकली, भैरवी तथा माही है। सुकली व भैरवी नदी धारियावाद से प्रवाहित होती है।
प्रतापगढ़ में वन एवं वन्य जीव —
सीतामाता अभयारण्य — यह मुख्य रूप से इस जिले की धरियावद एवं चित्तौड़गढ़ की बड़ी सादड़ी तहसील में स्थित है। यह राजस्थान का एकमात्र सागवान के वनों का अभयारण्य है तथा यह हिमालय के पश्चात् अत्यधिक मात्रा में दुर्लभ व औषधियां पाई जाने का दूसरा वन क्षेत्र है।
इस अभयारण्य के उपनाम चीतल की मातृभूमि एवं उड़न गिलहरियों का स्वर्ग है और यही इस अभयारण्य की मुख्य विशेषता है। उड़न गिलहरियों को मशोवा के नाम से जाना जाता है। उडऩ गिलहरी दिन में महुवा वृक्ष में छिपती है।
इस अभयारण्य से होकर बहने वाली नदियों में जाखम, सीतामाता, टांकिया, भूदो एवं नालेश्वर आदि मुख्य है। इस अभयारण्य में दो जल स्रोतों को लव-कुश के नाम से जाना जाता है।
इस अभयारण्य में पाई जाने वाली आर्किड की दो दुर्लभ प्रजातियां एरीडीस क्रिस्पम और जुकजाइन स्ट्रैटामेटिका एवं इसके अतिरिक्त फर्न्स की नौ दुर्लभ प्रजातियां भी मिलती है।
प्रतापगढ़ के दर्शनीय स्थल —
काकाजी की दरगाह—इस दरगाह को काँठल की दरगाह कहते हैं।
अरनोद—प्रतापगढ़ की इस तहसील में गौतमेश्वर/भूरिया बाबा (मीणाओं के ईष्ट देव) का मेला वैशाख पूर्णिमा को लगता है।
छोटी माँजी साहिबा का किला—प्रतापगढ।
शंखेश्वर पार्श्वनाथ—यह मंदिर मेवाड़-मालवा के पंचतीर्थों में अद्वितीय स्थान रखता है। प्राचीन दन्तकथा के अनुसार सैकड़ों वर्षों पूर्व आकाश मार्ग से उड़ाकर यह तीर्थ ले जाया जा रहा था तब प्रतापगढ़ में विराजमान यतिमहाराज ने तांत्रिक शक्ति से इस मंदिर को नगर के तालाब के समीप स्थापित किया।
दीपेश्वर महादेव—जनमानस में दीपनाथ के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर का निर्माण दीपसिंह ने करवाया।
केशवराय मंदिर— प्रतापगढ़ वासियों की आस्था का केन्द्र, इस मंदिर में जलझूलनी एकादशी एवं विजयादशमी को भगवान केशवराय की विशाल रथयात्रा का आयोजन होता है।
श्री बामोतर तीर्थ—प्रतापगढ़ के समीप स्थित जैन धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल।
सोली—सोली में हनुमानजी एवं महाकाल के प्रसिद्ध मंदिर दर्शनीय है।
प्रतापगढ़ जिले के अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य —
प्रतापगढ़ में चार उपखण्ड है-(पीपल खूँट को छोड़कर अन्य चारों तहसीलें)।
प्रतापगढ़ जिले के भू-भाग को काँठल प्रदेश के नाम से जाना जाता है।
थेवा कला —प्रतापगढ़ जिला कला के क्षेत्र में अत्यधिक समृद्ध है। इस जिले की थेवा कला में कांच पर सोने की सूक्ष्म चित्रांकन का कार्य है (काँच पर सोने की नक्काशी)। यह देश में ही नहीं विदेशों में भी ख्याति प्राप्त है।
थेवा कला के लिए महेशराजसोनी को 2015 में पद्म श्री मिला है।
थेवा कला को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाला—जस्टिन वकी। (2009 में राजीव गाँधी पुरस्कार से सम्मानित)
देवगढ़ में 6 मार्च, 2001 को राज्य की तीसरी पवन ऊर्जा परियोजना स्थापित की गई। इसका संचालन मैसर्स एशियन विंड टरबाइन प्राइवेट लि. (चैन्नई) द्वारा किया जा रहा है।
देवगढ़ में बीजमाता का मन्दिर है जहाँ चैत्र नवरात्रों में मेला लगता है।
प्राचीन देवगढ़ ही वर्तमान में प्रतापगढ़ कहलाने लगा।
अरनोद को काँठल का हरिद्वार (गौतमेश्वर मंदिर के कारण) कहते हैं।
प्रतापगढ़ से बाँसवाड़ा के मध्य का भू-भाग छप्पन का मैदान कहलाता है।
प्रतापगढ़ राजस्थान का एकमात्र ऐसा जिला है जिसमें कोई भी रेलमार्ग नहीं है।
1945 में अमृतलाल पाठक द्वारा प्रतापगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना एवम् 1936 में हरिजन सेवा समीति की स्थापना की गई।
प्रतापगढ़ को जिला बनाने की घोषणा वसुन्धरा राजे ने 26 जनवरी, 2008 को गणतन्त्र दिवस समारोह-अजमेर में की।
सितारों वाला दुर्लभ कछुआ 25 अप्रैल 2010 को वनकर्मियों को पारसोला में देखने को मिला था। उल्लेखनीय है कि शिकार व तस्करी के कारण ”स्टार टॉरटाइज” प्रजाति लुप्त होती जा रही है।