राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं भाग – 2
1. माण्डव्यपुर – (जोधपुर)
माण्डव्यपुर का वर्तमान नाम मण्डोर हैं, मण्डोर की जानकारी रामायण से मिलती हैं। रामायण की रचना वाल्मिकी ने की थी तथा रामायण का राजस्थानी में अनुवाद हनुवंत सिंह किंकर ने किया। मण्डोर से रावण की चंवरी मिली हैं। रावण का ससुराल मण्डोर में था, रावण का विवाह मन्दोदरी से हुआ था। दशहरा शोक पर्व के रूप में मारवाड़ में मनाया जाता हैं। दशहरा अश्विन शुक्ल दशमी को मनाया हैं तथा दशहरे के अवसर पर मदील पगड़ी पहनी जाती हैं। इस अवसर पर लीलटांस पक्षी का दिखाई देना शुभ माना जाता तथा इस दिन खेजड़ी वृक्ष की पूजा की जाती हैं।
विशेष तथ्य – जोधपुर में सर्वप्रथम सरकारी डाकघर की स्थापना 1839 में हुई, मण्डोर की स्थापना प्रतिहार शासक हरिषचन्द्र ने की थी। मण्डोर में राष्ट्रीय विधि विश्वकविद्यालय हैं। मण्डोर में 18 भुजाओं की नागणेची माता का मन्दिर हैं, यह माता जोधपुर के राठौड़ों की कुलदेवी हैं। ’’जोधपुर के राठौड़ों’’ की छतरियां भी यहीं हैं। यहाँ पर 33 करोड़ देवी- देवताओं की मूर्ति स्थापित हैं।
2. नोह- रूपारेल नदी, भरतपुर
यहाँ पर महाभारत से लेकर शक सातवाहन तक की 5 संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं। यहाँ से स्वास्तिक चिन्ह (मिट्टी के पात्र पर) तथा पक्षी चित्रित ईंट भी मिली हैं। यहाँ से जोख बाबा की मूर्ति भी मिली हैं। यह राजस्थान का एकमात्र ऐसा स्थान हैं जहां पर ताम्रयुगीन, आर्यकालीन व महाभारतकालीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं। यहाँ से पाप हतस अंकन वाली मुद्रा प्राप्त हुई हैं।
3. बागौर- कोठारी नदी, (भीलवाड़ा)
यहाँ से भारत के प्राचीनतम पशु-पालन के अवशेष मिले हैं, बागौर से मध्यपाषाण काल के अवशेष मिले हैं। बागौर को आदिम संस्कृति का संग्रहालय भी कहा जाता हैं। यहाँ पर महासतियों का टीला मिला हैं। यह भारत की सबसे सम्पन्न पाषाणीय सभ्यता थी।
4. रंगमहल- हनुमानगढ़
यहाँ से गुरू शिष्य की मूर्ति मिली है तथा यहाँ से 105 तांबे की मुद्राएं मिली हैं। यहाँ की गुप्तकालीन मृण्मूर्तियों में शिव व पार्वती का भी अंकन हुआ हैं। यह क्षेत्र प्रस्तर युगीन एवं प्रस्तर धातु युगीन संस्कृति की विशेषताओं को परिलक्षित करता हैं।
5. कुराड़ा- परबतसर, (नागौर)
यहाँ से तांबे के औजार मिले हैं, यहाँ पर प्रणालयुक्त अध्र्यपात्र भी मिले हैं, इनका सम्बन्ध विशेषतः ईरान से था। यहाँ पर राजस्थान राज्य के पुर्नगठन से पहले सर्वप्रथम 1934 में ताम्र सामग्री मिली हैं।
6. बालाथल- उदयपुर
इसकी खोज 1993 में बी. एन. मिश्र ने की थी। यहाँ से पशुपालन, कृषि, शिकार के साक्ष्य तथा तांबे के आभूषण मिले हैं। यह एक मिश्रित अर्थव्यवस्था थी। यहाँ की ताम्रपाषाण युगीन संस्कृति एक विकसित संस्कृति थी।
7. गिलूण्ड- बनास नदी
राजसमन्द, यह एक ताम्रयुगीन सभ्यता थी। यहाँ से उच्चस्तरीय जमाव में क्रीम रंग व काले रंग से चित्रित पात्रों पर चिकतेदार हरिण के साक्ष्य भी मिले हैं।
8. रैढ़ – ढ़ील नदी, टोंक
यहाँ से मातृदेवी व गजमुखी यक्ष की मूर्ति मिली हैं। यहाँ से एशिया का सबसे बड़ा सिक्कों का भण्डार मिला हैं, इसलिए रैढ़ को टाटानगर के नाम से जाना जाता हैं।
9. भादरा- हनुमानगढ़
यह हड़प्पा समकालीन स्थल हैं, भादरा के करनपुरा में 8 जनवरी 2013 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को 4500 वर्ष पुराना मानव कंकाल मिला हैं।
10. गरदड़ा- बूंदी – यह छाजा नदी के किनारे स्थित हैं, यहाँ से शैलचित्र या रॉक पेंटिग व बर्ड राइडिंग ऑन द रॉक (चट्टानों पर उड़ते हुए पक्षी), मिले हैं।
विशेष तथ्य – नागौर को औजारों की नगरी कहते है।
11. बरोर- गंगानगर – इस सभ्यता को प्राक्, प्रारंभिक एवं विकसित हड़प्पा काल में बांटा जा सकता हैं। यहाँ के मिट्टी के बर्तनों में काली मिट्टी पाई गई हैं।
12. नैनवा- बूंदी – यहाँ पर सर्वप्रथम उत्खनन श्रीकृष्णदेव ने करवाया, यहाँ से महिशासुर मर्दिनी की मिट्टी की मूर्ति मिली हैं।
13. किरोड़ोत- जयपुर – यहाँ से 28 प्रकार की तांबे की चूड़ियां मिली थी। यहाँ से एक कांस्य युगीन नृत्यांग्ना की मूर्ति मिली हैं।
14. जोधपुरा- साबी नदी, जयपुर – यह जयपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित हैं, यहाँ से पाषाण के मनके तथा हाथी दांत के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
15. ईसवाल- उदयपुर – यहाँ से लौहे कालीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं, यहाँ से ऊंट के दांत के अवशेष मिले हैं।
16. तिलवाड़ा- (बाड़मेर) – यह लूणी नदी के किनारे स्थित है तथा यहाँ से पशुपालन के अवशेष मिले हैं।
17. बयाना- भरतपुर – यहाँ से गुप्तकालीन सिक्के प्राप्त हुए हैं, बयाना नील की खेती के लिए प्रसिद्ध था।
18. भीनमाल- जालौर – यहाँ से मिट्टी के बर्तनों पर एम्पोरा (रोमन) के साक्ष्य मिले हैं।
19. कुण्डा/पोरवार/सोनू- जैसलमेर – यहाँ से प्राचीनतम चूहे के दांत के जीवाष्म मिले हैं।
20. बरबाला- पाली – यहाँ से जीवन्त स्वामी/महावीर स्वामी की धातु की मूर्ति मिली हैं।
21. नगरी- चितौड़ – भारत के सबसे प्राचीन वैष्णव मन्दिर के अवशेष यहीं से मिले हैं।
22. सुनारी- झंझुनू – यहाँ से लौहे को गलाने की भट्टी तथा लौहे का प्याला मिला हैं।
23. गुरारा सभ्यता- सीकर – यहाँ से 2744 चांदी के पंचमार्क सिक्के प्राप्त हुए हैं।
24. मालपुरा- झालावाड़ – यहाँ से मिली कोलवी की गुफा बौद्ध धर्म का केन्द्र हैं।
25. दर- भरतपुर – इस स्थान पर पाषाणकालीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं।
26. बांका- भीलवाड़ा – यहाँ से राजस्थान की प्रथम अलंकृत गुफा मिली हैं।
27. ओला- जैसलमेर – यहाँ से पाषाणकालीन कुल्हाड़ी के साक्ष्य मिले हैं।
28. जहाजपुरा- भीलवाड़ा – यहाँ से भी महाभारत कालीन अवशेष मिले हैं।
29. खुड़ी – नागौर – यहाँ से हमें नालीदार टोंटी का कटोरा प्राप्त हुआ हैं।
30. पीलीबंगा – हनुमानगढ़ – यहाँ से ईंटों का कुंआ मिला है।
31. लोद्रवा- (जैसलमेर) – यह हड़प्पा समकालीन स्थल हैं।
32. सोथी- (बीकानेर) – इसे कालीबंगा प्रथम कहते हैं।
राजस्थान के जिलों में स्थित प्रमुख सभ्यताएं
गंगानगर – अनूपगढ़, तरखानवाला, चक 84
बीकानेर – सांवलिया, पूगल, सोथी, डाडाथोरा
जैसलमेर – लोद्रवा, ओला, कुड़ा
बाड़मेर – तिलवाड़ा
जालौर – ऐलाना, भीनमाल
सिरोही – चन्द्रावती
उदयपुर – आहड़, बालाथल, ईषवाल, झाड़ौल, वल्लभनगर
बांसवाड़ा – चन्द्रावली
चितौड़गढ़ – नगरी, शिवी, माध्यमिका, पीण्डपालिया,नदी की घाटी
धौलपुर – खानपुरा
भीलवाड़ा – बागौर, ओझीयाना, जहाजपुरा
कोटा – दर्रा, आलनिया, तीपटिया
सवाईमाधोपुर – कोलमहोली
भरतपुर – दर, नोह, बयाना, श्रीपंथ
अलवर – डडीकर
जयपुर – बैराठ, जोधपुरा, चीथवाड़ी, नन्दलालपुरा, सांभर (नलियासर)
सीकर – गुरारा, गणेश्वर, सोहगरा
झुंझुनू – सुनारी
हनुमानगढ़ – रंगमहल, पीलीबंगा, कालीबंगा, भादरा
जोधपुर – मण्डोर, बिलाड़ा, उम्मेदनगर
पाली – नाडोल
राजसमन्द – गिलूण्ड
बून्दी – गरदड़ा, नैनवा, इन्द्रगढ़
टोंक – रेढ़, नगर, मालव, कंकोड़
दौसा – बसवा
अजमेर – बूढ़ा पुष्कर
नागौर – डीडवाना, कुराड़ा, जायल, खुड़ी।