राजस्थान के प्रमुख प्रजामण्डल

राजस्थान के प्रमुख प्रजामण्‍डल 

मारवाड़ प्रजामण्डल –

मारवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना 1934 में जयनारायण व्यास तथा भंवरलाल सर्राफ ने की थी। मारवाड़ में राजनैतिक जागरूकता का श्रेय 1920 में स्थापित ’’राजस्थान सेवा संघ’’ की उपशाखा ’’मारवाड़ सेवा संघ’’ को जाता है। जिसकी अध्यक्षता चांदमल सुराणा ने की। लेकिन कुछ समय बाद ये संगठन लगभग समाप्त हो गया। 1924 में जयनारायण व्यास व चांदमल सुराणा के प्रयासों से इस संस्था का नाम बदलकर ’’मारवाड़ हितकारिणी सभा’’ के रूप में शुरू किया तथा इस सभा का अध्यक्ष चांदमल सुराणा व मंत्री किशनलाल बापना को बनाया गया। पहली बार इसने 1926 में सरकार द्वारा मादा पशुओं की निकासी के विरूद्व आन्दोलन किया। जिसमें इस संस्था को अभूतपूर्व सफलता मिली। ’’अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद्’’ का बम्बई में अधिवेशन 25 मई, 1929 को हुआ जिसमें जयनारायण व्यास ने भाग लिया। 12 अक्टूबर 1929 को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् की राज्य शाखा ’’मारवाड़ राज्य लोक परिषद्’’ का मारवाड़ (जोधपुर) में अधिवेशन बुलाने का निर्णय लिया गया लेकिन मारवाड़ सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी। सरकार के इस निर्णय का जयनारायण व्यास ने पुरजोर विरोध किया। इसके विरोध में व्यास जी ने ’’तरूण राजस्थान’’ नामक समाचार पत्र व ’’पोपा बाई पोल’’’’मारवाड़ की अवस्था’’ नामक दो पुस्तकों का विमोचन किया इसके माध्यम से प्रशासन की आलोचना की।

  • 23 सितम्बर, 1930 को जयनारायण व्यास, चांदमल सुराणा व भंवर लाल सर्राफ आदि की राज्य विरोधी कार्यवाही तहत इनको गिरफ्तार किया गया तथा इन सभी को 5 साल की सजा हुई। 1931 को इन नेताओं को रिहा कर दिया गया। व्यास जी को मारवाड़ से निर्वासित कर दिया गया व्यासजी मारवाड़ से ब्यावर आ गये। ब्यावर से 1938 में इन्होंने ’’तरूण राजस्थान’’ नामक पत्रिका का प्रकाशन किया तथा इसके जुर्म में इनको नागौर जेल में डाल दिया।
  • जेल से रिहा होने के बाद व्यास जी वापस ब्यावर आकर ’’सविनय अवज्ञा आन्दोलन’’ में भाग लिया तथा वापस जेल हुई फिर 1933 में रिहा हुए।
  • 1936 में 562 रियासतों को मिलाकर ’’भारत रियासत लोक परिषद्’’ नामक संगठन बनाया जिसके महामंत्री श्री जयनारायण व्यास थे इसके तहत उनको बम्बई रहना पड़ा तथा बम्बई रहते हुए इन्होंने ’’अखण्ड़ भारत’’ नामक एक पत्र निकाला।
  • 10 मई, 1931 को जयनारायण व्यास ने मारवाड़ से बाहर रहते हुए ’’मारवाड़ यूथ लीग’’ की स्थापना की जिसका मंत्री भानमल जैन को बनाया। मारवाड़ सरकार ने 27 मई, 1931 को इसे अवैध घोषित कर दिया।
  • ’’मारवाड़ राज्य लोक परिषद’’ जिसका अधिवेशन 25 नवम्बर, 1931 में पुष्कर में सम्पन्न करवाया, जिसके मुख्य अतिथि कस्तूरबा गाँधी थी। इसके अध्यक्ष चांदकरण शारदा व सचिव जयनारायण व्यास थे।
  • 1934 में व्यासजी के प्रयासों से ’’मारवाड़ प्रजा मण्डल’’ की स्थापना हुई जिसके अध्यक्ष भंवर लाल सर्राफ। मारवाड़ सरकार ने इसे अवैध घोषित किया।
  • 1936 में नेहरू जी के मारवाड़ आने पर ’’मारवाड़ अधिकार रक्षक सभा’’ की स्थापना की जो कि मारवाड़ प्रजा मण्डल की जगह थी। लेकिन सरकार ने इसे भी अवैध घोषित कर दिया।
  • 1938 में सुभाष चन्द्र बोस मारवाड़ आये तथा उन्हीं की प्रेरणा से ’’मारवाड़ अधिकार रक्षक सभा’’ की जगह रणछोड़ दास गट्टानी के नेतृत्व में ’’मारवाड़ लोक परिषद’’ की स्थापना की।
  • 1938 में जयनारायण व्यास पर लगा मारवाड़ प्रवेश प्रतिबन्ध हटा दिया गया तथा 2 फरवरी, 1939 को मारवाड़ सरकार ने ’’केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड’’ का गठन किया जिसका सदस्य व्यास जी भी थे। जैसे-जैसे मारवाड़ लोक परिषद की ख्याति बढ़ी तो मारवाड़ सरकार ने इसको भी अवैध घोषित कर दिया।

पं. नेहरू के कहने पर पं. द्वारका नाथ काचरू जो कि ’’अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद’’ सदस्य थे जिसको मारवाड़ की स्थिति के अवलोकन के लिये भेजा। जिन्होंने अपनी रिपोर्ट में ’’मारवाड़ के वातावरण को दमघोटू’’ बताया। 26 जून, 1940 को मारवाड़ राज्य व मारवाड़ लोक परिषद के मध्य समझौता हो गया, क्योंकि उस समय महाराजा उम्मेदसिंह को वायु सेना का प्रषिक्षण हेतु बाहर जाना था। 28 मार्च, 1941 को मारवाड़ में ’’उतरदायी शासन की स्थापना’’ हुई तथा इस दिन को मारवाड़ उतरदायी शासन दिवस के रूप में मनाया। व्यास जी लोक परिषद् को मारवाड़ पब्लिक सोसाइटी एक्ट के तहत रजिस्टर करवाया। भारत छोड़ो आन्दोलन के तहत जयनारायण व्यास की पु़त्री रमादेवी व अंचलेश्वहर दास शर्मा की पत्नी कृष्णा कुमारी के नेतृत्व में महिलाओं ने आन्दोलन किया। इसी दौरान लालचन्द जैन ने मारवाड़ क्रांति संघ की स्थापना की। 1944 में महाराजा उम्मेदसिंह ने सत्याग्रहियों की रिहाई करते हुए एस. ए सुधाकर की अध्यक्षता में प्रशासनिक सुधार आयोग की स्थापना की। 3 मार्च, 1948 को व्यास जी के नेतृत्व में मारवाड़ में उतरदायी मंत्रिमण्डल स्थापित हुआ। 30 मार्च, 1949 ई. जोधपुर का वृहत राजस्थान में विलय हो गया।

अलवर प्रजामण्डल-

  • अलवर प्रजामण्डल का जनक तथा अलवर में जागृति फैलाने का श्रेय पं. हरिनारायण शर्मा को जाता है। इन्होनें जनजातियों के उत्थान हेतु आदिवासी संघ अस्पृष्यता निवारण संघ व वाल्मीकि संघ स्थापित किये। 1937 में अलवर में कांग्रेस समिति की स्थापना की गई।
  • जिसका अध्यक्ष पं. शालिगराम तथा मंत्री इन्द्रसिंह को बनाया। कुछ समय पष्चात् इस समिति का विलय कर अलवर प्रजामण्डल में किया गया।
  • पं. हरिनारायण शर्मा व कुंजबिहारी लाल ने अलवर प्रजामण्डल की स्थापना की तथा 1944 को भवानी शंकर शर्मा की अध्यक्षता में इसका प्रथम अधिवेशन हुआ।

बीकानेर प्रजामण्डल-

  • बीकानेर के शासक गंगासिंह जो जनता में राजनैतिक जागृति नहीं देखना चाहते थे। बीकानेर राज्य के कुछ लोगों ने इसका साहस दिखाया। लेकिन सरकार ने उनका दमन किया और उन्हें राज्य से निष्कासित तक कर दिया। फिर भी बीकानेर राज्य के कुछ लोगों ने राजनैतिक जागृति हेतु प्रयास किया जिनमें मुख्य है- मैघाराम वैद्य, लक्ष्मीदास, सत्यनारायण सर्राफ व मुक्त प्रसाद आदि थे। मैघाराम ने कलकता में रहते हुऐ 4 अक्टूबर, 1936 को बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की जिसका अध्यक्ष मैघाराम वैघ व मंत्री लक्ष्मण दास स्वामी को बनाया।
  • बीकानेर के शासक गंगासिंह ने कम समय में ही इसका दमन कर दिया इस घटना को बीकानेर प्रजामण्डल की भू्रण हत्या कहते हैं। 22 जुलाई, 1942 में बीकानेर राज्य प्रजा परिषद की स्थापना हुई इसका लक्ष्य था कि बीकानेर राज्य में उतरदायी शासन की स्थापना करना इसकी स्थापना रघुवर दयाल गोयल ने की। महाराजा गंगासिंह की दमन नीति के तहत रघुवर दयाल गोयल को बीकानेर रियासत से निष्कासित कर दिया। गंगासिंह की मृत्यु के पश्चा त् उनका पुत्र शार्दूलसिंह गद्दी पर बैठे। इन्ही के शासन काल में 30 जून, 1946 में बीकानेर प्रजा परिषद् की स्थापना हुई तथा इसका अधिवेशन राससिंह नगर में हुआ।
  • बीकानेर प्रजा परिषद् की अध्यक्षता सत्यनारायण सर्राफ ने की। सरकार ने दमन चक्र चलाया तथा पुलिस द्वारा गोलियां चलाई गई इस गोली काण्ड में कार्यकर्ता बीरबलसिंह शहीद हो गया। इस गोली काण्ड की जांच हेतु अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद ने गोकुल भाई भट्ट व हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व जांच आयोग गठित किया। महाराजा शार्दूल सिंह ने देश का राजनैतिक माहौल देखते हुए 1947 में बीकानेर में नया संविधान लागू कर उतरदायी शासन की स्थापना की।

विशेष- बीकानेर प्रजामण्डल के अधिवेशन के तहत हुई गोलीकाण्ड में शहीद बीरलसिंह की स्मृति में इन्दिरा गाँधी नहर की एक मुख्य वितरिका शाखा का नाम शहीद बीरबल शाखा रखा है।

झालावाड़ प्रजामण्डल-

  • झालावाड़ में प्रजामण्डल की स्थापना 25 नवम्बर, 1946 को हुई। इसकी अध्यक्षता माँगीलाल भव्य ने की, झालावाड़ महाराजा ने प्रजामण्डल को समर्थन दिया जिस कारण सरकार बनने के बाद उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया।

कुशलगढ़ प्रजामण्डल –

  • 1942 में भँवर लाल निगम की अध्यक्षता में तथा कन्हैया लाल सेठिया के प्रयासों से कुशलगढ़ प्रजामण्डल की स्थापना हुई।
  • कुशलगढ़ पहले बाँसवाड़ा का भाग था लेकिन बाद में ब्रिटिश सरकार ने इसे अलग राज्य बना दिया।

सिरोही प्रजामण्डल-

  • सिरोही में प्रजामण्डल की स्थापना की कोशिश सर्वप्रथम 1934 में की गई परन्तु सिरोही महारावल ने प्रजामण्डल से सम्बंधित गतिविधियों को सीमित कर दिया। भीमशंकर शर्मा ने सिरोही संदेश नामक समाचार पत्र निकाल कर सिरोही महारावल की नीतियों की कटू आलोचना की। कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के निर्णय के तहत गोकुल भाई भट्ट ने 23 जनवरी, 1939 को सिरोही में प्रजामण्डल की स्थापना की।
  • 1939 में प्रजामण्डल की एक सभा चल रही थी जिसमें बहुत बड़ी संख्या में भीड़ मौजूद थी वहाँ पुलिस ने अचानक लाठी चार्ज कर दिया जिसमें बहुत से लोग घायल हो गये। गाँधी जी ने इस घटना की निन्दा करते हुए इस घटना को हरिजन सेवक नामक समाचार पत्र में प्रकाषित किया।
  • 1940 में महाराजा स्वरूप सिंह ने सिरोही प्रजामण्डल को मान्यता दे दी। 26 जनवरी, 1950 ई. को आबू व देलवाड़ा को छोडकर सम्पूर्ण राज्य को राजस्थान में मिला दिया गया। सिरोही का वर्तमान राजस्थान में विलय 2 चरणों में हुआ था।

किशनगढ़ प्रजामण्डल-

  • 1930 में किशनगढ़ में एक उपकारक मण्डल की स्थापना की गई जिसके संस्थापक कान्तिलाल चैथाणी थे। जिसका उद्देश्यज गरीबों व असहाय लोगों की मदद करना था।
  • 1939 में किशनगढ़ में प्रजामण्डल की स्थापना कान्तिलाल चैथाणी की मुख्य भूमिका में हुई। किशनगढ़ प्रजामण्डल का अध्यक्ष जमाल शाह तथा मंत्री महमूद का किशनगढ़ रियासत की तरफ से कोई विरोध नहीं हुआ।
  • 25 मार्च, 1948 को पूर्व राजस्थान संघ के विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर किशनगढ़ को भारत संघ का एक अंग बना दिया।

शाहपुरा प्रजामण्डल-

  • 1938 में शाहपुरा प्रजामण्डल की स्थापना रमेश चन्द्र ओझा, लादूराम व्यास व अभयसिंह डांगी ने की जो मेवाड़ प्रजामण्डल के संस्थापक श्री माणिक्य लाल वर्मा की प्रेरणा से हुई। शाहपुरा रियासत की ओर से भी किसी प्रकार का कोई विरोध नहीं था।
  • 1945 में शाहपुरा प्रजामण्डल क तत्कालीन अध्यक्ष गोकुल लाल असावा ने संविधान समिति का गठन किया। इस समिति के द्वारा बनाया गया संविधान 14 अगस्त, 1949 को लागू कर पूर्ण रूपेण उतरदायी शासन की स्थापना की।
  • राज्य की पहली रियासत शाहपुरा थी जिसने शासन को जनप्रतिनिधियों को सौंपकर पूर्ण उतरदायी शासन की स्थापना की।

कोटा प्रजामण्डल/हाड़ौती प्रजामण्डल-

  • कोटा राज्य में जन जागृति का श्रेय नयनूराम शर्मा को जाता है इन्होंने पुलिस की नौकरी छोड़कर 1934 में विजयदशमी के दिन हाडौती प्रजामण्डल की स्थापना की। इसके मंत्री ग्वाल जी मानजी व उपमन्त्री तन सुखलाल मितल को बनाया गया। लेकिन महाराव द्वारा इस संस्था को निष्क्रिय कर दिया गया।
  • महाराव द्वारा राजस्थान सेवा संघ की उपशाखा को भी कोटा में प्रतिबन्धित कर दिया था। नयनूराम शर्मा ने हाड़ौती शिक्षा मण्डल की स्थापना की, 1939 में नयनूराम शर्मा व अभिन्न हरि ने मिलकर कोटा प्रजामण्डल की स्थापना की, 1939 में इस प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन मांगरोल (बाँरा) में हुआ।
  • इस अधिवेशन की अध्यक्षता नयनूराम शर्मा ने की। इसी दिन कोटा में श्रीमती शारदा भार्गव की अध्यक्षता में महिला सम्मेलन का आयोजन हुआ। 14 अक्टूबर, 1941 को किन्हीं अज्ञात लोगों द्वारा नयनूराम शर्मा की अपने गाँव जाते समय रास्ते में हत्या कर दी गई। इसके बाद कोटा प्रजामण्डल की अध्यक्षता अभिन्न हरि ने की थी।
  • कोटा में राजनैतिक चेतना की लहर फैल गई। भारत छोड़ो आन्दोलन के तहत कोटा की जनता ने कोटा पर अधिकार कर कोतवाली पर तिरंगा फहराया तथा बाद में कोटा महाराव भीमसिंह और प्रजामण्डल के मध्य समझौता हुआ लेकिन यह समझौता क्रियान्वित होता उसके पहले ही कोटा राजस्थान संघ में विलय हो गया।

बूँदी प्रजामण्डल-

  • बूँदी प्रजामण्डल की स्थापना 1931 में कान्तिलाल की अध्यक्षता में की। लेकिन बूँदी रियासत ने प्रजामण्डल की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए दमन का सहारा लिया।
  • 1937 में इस प्रजामण्डल के अध्यक्ष ऋषिदत मेहता बने तथा अध्यक्ष बनते ही उन्हें गिरफ्तार कर अजमेर जेल में डाल दिया।
  • 19 जुलाई, 1944 को जेल से रिहा होते ही ऋषिदत मेहता, हरिमोहन माथूर, बृजसुन्दर शर्मा आदि ने मिलकर बूँदी राज्य लोक परिषद् की स्थापना की जिसके अध्यक्ष हरिमोहन माथुर थे।
  • 1946 में बूँदी महाराजा बहादुरसिंह ने उतरदायी शासन की स्थापना कर लोकप्रिय मन्त्रिमण्डल की घोषणा कर दी।

धौलपुर प्रजामण्डल-

  • 1910 में आचार सुधारिणी सभा तथा 1911 आर्य समाज की स्थापना कर जमुना प्रसाद वर्मा ने धौलपुर में जन जागृति में अपना अमूल्य योगदान दिया। 1918 में स्वामी श्रद्धानन्द के द्वारा स्वदेशी व शुद्धि आन्दोलन चलाया गया जो उनकी मृत्यु के उपरान्त समाप्त हो गया।
  • 1934 में नागरी प्रचारिणी सभा की ज्वाला प्रसाद ’’जिज्ञासु’’ व जौहरीलाल इन्दु ने स्थापना की इस सभा ने राज्य में उत्थान का कार्य किया तथा जनता के सहयोग से 1938 धौलपुर प्रजामण्डल की स्थापना हो सकी तथा इसका प्रथम अध्यक्ष कृष्णदत पालीवाल को बनाया। जैसे-जैसे धौलपुर प्रजामण्डल का प्रचार-प्रसार होने लगा तो धौलपुर नरेश ने जिज्ञासु व जौहरीलाल इन्दु को राज्य से निष्कासित कर दिया तथा राज्य में दमन नीति के तहत एक बड़ा काण्ड तसीमों काण्ड़ हुआ। तसीमों प्रजामण्डल की गतिविधियों का प्रमुख स्थल था।
  • 11 अप्रैल, 1947 को इसी गाँव में एक नीम के पेड़ पर तिरंगा फहरा कर पेड़ के नीचे सभा आयोजन का किया जा रहा था, तभी पुलिस ने वहाँ पहुँच कर सभा को तितर-बितर कर तिरंगा उतराने की कोशिश की। इसका विरोध करते हुए ठाकुर छत्रसिंह परमार व ठाकुर पंचम सिंह कच्छवाहा की मौके पर ही मृत्यु हो गई। इसकी याद में प्रतिवर्ष 11 अप्रैल को तसीमों में एक मेला लगता है।

जैसलमेर प्रजामण्डल-

  • जैसलमेर रियासत काल में भी पिछड़ा राज्य था, इसलिए राजनैतिक जागृति में भी पिछड़ा था। जैसलमेर में सर्व प्रथम महारावल शालिवाहन द्वितीय के समय वहाँ व्यापारियों द्वारा लानी कर के विरूद्ध आन्दोलन किया गया था। 1920 ई. में जैसलमेर के कुछ लोगों के द्वारा सर्वहितकारी वाचनालय की स्थापना की जिसके माध्यम से राजनैतिक चेतना होने लगी। परन्तु महारावल ने इसे अवैध घोषित कर दिया।
  • 1930 में सागरमल गोपा, रघुनाथ सिंह मेहता और आईदानसिंह से गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया इनका जुर्म यह था कि इन्होंने पं. जवाहर लाल नेहरू जी के जन्म दिवस पर बधाई देकर स्वस्थ जीवन की कामना की थी, इससे जैसलमेर महारावल नाराज हो गया था। इसके बाद रघुनाथ सिंह मेहता ने 1932 में माहेश्वकरी युवक मण्डल व सागरमल गोपा, लालचन्द जोशी व मदनलाल पुरोहित ने 1938 में लोक परिषद की स्थापना की इसे भी महारावल ने अवैध घोषित कर दिया।
  • सागरमल गोपा जी को जेल में डाल दिया। लालचन्द जोशी व मदनलाल पुरोहित ने जोधपुर में जैसलमेर प्रजामण्डल की स्थापना की लेकिन जैसलमेर सामन्तों ने इसे असफल बनाने के लिए जैसलमेर राज्य लोक परिषद् की स्थापना की।
  • 15 अगस्त, 1947 जैसलमेर के राजकुमार गिरधारीसिंह ने जोधपुर महाराजा हनुवन्तसिंह से मिलकर जिन्ना से बात की और पाकिस्तान में मिलने का निश्चइय किया। भारत सरकार के प्रयत्नों से 30 मार्च, 1949 को वृहत राजस्थान में जैसलमेर राज्य विलय हो गया और वहाँ राजशाही शासन समाप्त हो गया।

बाँसवाड़ा प्रजामण्ड़ल-

  • बाँसवाड़ा प्रजामण्डल की स्थापना का श्रेय भूपेन्द्र नाथ त्रिवेदी, धूलजी भाई, मणिशंकर नागर व मोतीलाल को जाता है।
  • 1943 में बाँसवाड़ा प्रजामण्डल की स्थापना हुई तथा इसका प्रथम अध्यक्ष भूपेन्द्र नाथ त्रिवेदी को बनाया गया। बाँसवाड़ा के महारावल ने इसका विरोध किया लेकिन इनको भी आखिर में झुकना पड़ा और 1946 में प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन हुआ और उतरदायी शासन की मांग की गई।

डूँगरपुर प्रजामण्डल-

  • भील जाति में जागृति पैदा करने के लिए भोगीलाल पाण्डया ने सेवा संघ स्थापना की। भारत छोड़ो आन्दोलन के तत्वाधान में आन्दोलन शुरू हुआ। इस कारण सरकार व सेवा संघ के मध्य सम्बन्ध तनाव पूर्ण हुए।
  • 1 अगस्त, 1944 को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की पुण्य तिथि के अवसर पर भोगीलाल पाण्डया, हरिदेव जोशी, गौरीशंकर उपाध्याय, शिवलाल कोटड़िया आदि ने मिलकर डूँगरपुर प्रजामण्डल की स्थापना की तथा इन्होंने मिलकर सेवक नामक एक समाचार पत्र का प्रकाशन किया जो कि हस्तलिखित था। डूंगरपुर प्रजामण्डल का प्रथम अध्यक्ष भोगीलाल पाण्डया थे।
  • 1946 को डूंगरपुर प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन भोगीलाल पाण्ड्या की अध्यक्षता में हुआ और उतरदायी शासन की मांग की तथा इसे दबाने के लिए डूंगरपुर सरकार ने दमन नीति का सहारा लिया। इसी दमन चक्र के तहत डूंगरपुर के महारावल ने सेवा संघ के तत्वाधान में संचालित पूनावाड़़ा गाँव की पाठशाला को तुड़वाकर वहाँ के अध्यापक शिवराम भील को निर्ममता से पिटा था।
  • इसी क्रम में 19 जून, 1947 को जब पुलिस ने रास्तापाल गाँव की पाठशाला बंद करवाते हुए पाठशाला के संरक्षक नाना भाई खाँट को मौत के घाट उतार दिया तथा पाठशाला के अध्यापक सेंगाभाई की बेरहमी से पिटाई की और ट्रक के बाँध कर घसीटा गया। अध्यापक की यह हालात देखकर उनकी शिष्या कालीबाई ने अपनी हाशियाँ से ट्रक के बाँधी गई रस्सी को काट दी, यह दृश्यय देखकर क्रोधित पुलिस वालों ने कालीबाई को गोलियों से भून दिया तथा 21 जून, 1947 को उसकी मृत्यु हो गई।
  • कालीबाई व नाना भाई खाँट का दाह संस्कार गैब सागर के पास सुरपुर ग्राम में किया। उस स्थान पर कालीबाई व नानाभाई खाँट की मूर्तियाँ लगाकर पार्क बनवाया गया है जहाँ प्रतिवर्ष राज्य सरकार की तरफ से मेले का आयोजन होता है।
  • 1947 को महारावल ने समझौते की नीति को अपनाते हुए गौरीशंकर उपाध्याय व भीखा भाई भील को प्रजामण्डल के प्रतिनिधियों के रूप में राज्य मंत्री मण्डल में शामिल कर दिया।

करौली प्रजामण्डल-

  • करौली में राजनैतिक चेतना का माध्यम करौली सेवा संघ था, जिसके संस्थापक मुंशी त्रिलोक चन्द माथुर थे, तथा इसके प्रथम अध्यक्ष भी वही थे। त्रिलोक चन्द के प्रयासों से प्रान्तीय कांग्रेस कमेठी, अजमेर की एक शाखा 1938 में करौली में स्थापित की।
  • 1939 में करौली प्रजामण्डल की स्थापना हुई तथा इसकी स्थापना का श्रेय त्रिलोक चन्द माथुर व चिरंजी लाल शर्मा, कँवर मदनसिंह को जाता है।
  • करौली प्रजामण्डल के प्रथम अध्यक्ष त्रिलोक चन्द माथुर थे तथा माथुरजी के मरणोपरान्त करौली प्रजामण्डल की अध्यक्षता का कार्यभार चिरंजी लाल शर्मा को दिया।
  • करौली में सरकार व प्रजामण्डल के मध्य किसी प्रकार का कोई टकराव नहीं था तथा कुँवर मदनसिंह ने करौली में प्रेमाश्रम व ब्रह्मचर्य आश्रम नामक दो संस्थाओं की स्थापना की।

भरतपुर प्रजामण्डल-

  • 1930 में प्रजा परिषद् के गठन के साथ ही भरतपुर में राजनैतिक चेतना शुभारम्भ हुआ, इसके प्रथम अध्यक्ष गोपी लाल यादव थे। इसी संस्था के तहत भरतपुर राज्य के संस्थापक सूरजमल की जयन्ती मनाई। इसी के साथ ही भरतपुर कांग्रेस मण्डल की स्थापना की गई इसकी स्थापना में जगन्नाथ कक्कड़, गोकुल वर्मा, मास्टर फकीर चन्द आदि का योगदान था, अन्य रियासतों की भाँति यहाँ की रियासत ने भी दमन का सहारा लिया। इसी कारण किशनलाल जोशी, गोपीलाल यादव, मास्टर आदित्येन्द्र और युगलकिशोर चतुर्वेदी ने दिसम्बर, 1938 में भरतपुर राज्य से बाहर रेवाड़ी (हरियाणा) में भरतपुर प्रजामण्डल की स्थापना की गई। इसके अध्यक्ष गोपीलाल यादव, उपाध्यक्ष ठाकुर देशराज व रेवती शरण शर्मा थे।
  • भरतपुर प्रजामण्डल को इसी दौरान अवैध घोषित कर दिया गया था तथा रियासत ने दमन नीति का प्रयोग किया। इसी के फलस्वरूप इस प्रजामण्डल ने सत्याग्रह शुरू कर दिया। 25 अक्टूबर, 1939 को भरतपुर राज्य के बृजेन्द्रसिंह महाराजा बने तथा महाराजा बनते ही भरतपुर प्रजामण्डल व महाराजा के मध्य एक समझौता हो गया।
  • 23 दिसम्बर, 1940 को भरतपुर प्रजामण्डल का पंजीकरण भरतपुर प्रजा परिषद् के नाम से कर दिया। इसका प्रथम अध्यक्ष मास्टर आदित्येन्द्र को बनाया गया, भरतपुर प्रजा परिषद का पहला अधिवेशन सितम्बर, 1940 से जनवरी, 1941 को भरतपुर में जयनारायण व्यास की अध्यक्षता में हुआ तथा दूसरा अधिवेशन 23-24 मई, 1945 बयाना में जयनारायण व्यास की अध्यक्षता में तथा तीसरा अधिवेशन 17-18 दिसम्बर, 1946 को कामा में डॉ. पट्टाभि सीतारमैया की अध्यक्षता में हुआ। पट्टाभि सीतारमैया ने भरतपुर प्रजा परिषद की प्रशंसा करते हुए कहा है कि-सामन्ती युग का अन्त हो गया है और प्रजातंत्र का उदय हुआ है। भविष्य में न तो जाट राज की स्थापना होगी न ही राजपूत राज की अब तो जनता का राज होगा।

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