हिन्दी : रसों के महत्त्वपूर्ण प्रश्न
(Ras / Sentiments Questions in Hindi)
→ रस सम्प्रदाय के प्रवर्तक हैं –
(A) आचार्य भरतमुनि
(B) आचार्य भामह
(C) आचार्य वामन
(D) आचार्य आनंदवर्धन
→ आचार्य भरतमुनि द्वारा स्वीकृत रसों की मूल संख्या है –
(A) आठ
(B) नौ
(C) दस
(D) ग्यारह
→ रस सम्प्रदाय का प्रवर्तन काल है –
(A) ई. पू. चतुर्थ शताब्दी
(B) ई. पू. प्रथम शताब्दी
(C) प्रथम शताब्दी ई.
(D) चतुर्थ शताब्दी ई.
→ आचार्य भरतमुनि द्वारा रचित रचना है –
(A) नाट्यवेद
(B) नाट्यशास्त्र
(C) नाट्यकला
(D) नाट्यालंकार
→ आचार्य भरतमुनि द्वरा प्रतिपादित रस सूत्र है –
(A) विभावानुभावसंचारीसंयोगाद्रसनिष्पत्ति:
(B) विभावानुभावव्यभिचारीसंयोगाद्रसनिष्पत्ति:
(C) विभावानुभावसंचारीवियोगाद्रसनिष्पत्ति:
(D) विभावानुभावव्यभिचारीवियोगाद्रसनिष्पत्ति:
→ भरतमुनि के रस – सूत्र की व्याख्या करने वाले सर्वप्रथम आचार्य हैं –
(A) भट्टनायक
(B) भट्टलोल्लट
(C) शंकुक
(D) अभिनवगुप्त
→ भरतमुनि के रस – सूत्र की व्याख्या करने वाले आचार्यों का सही आरोही क्रम है –
(A) भट्टनायक, भट्टलोल्लट, शंकुक, अभिनवगुप्त
(B) भट्टलोल्लट, शंकुक, अभिनवगुप्त, भट्टनायक
(C) भट्टलोल्लट, शंकुक, भट्टनायक, अभिनवगुप्त
(D) भट्टनायक, शंकुक, भट्टलोल्लट, अभिनवगुप्त
→ ‘उत्पत्तिवाद’ या ‘आरोपवाद’ के प्रतिपादक हैं –
(A) भट्टनायक
(B) भट्टलोल्लट
(C) शंकुक
(D) अभिनवगुप्त
→ ‘चित्रतुरंगन्याय’ के आधार पर रस निष्पत्ति की व्याख्या करने वाले आचार्य हैं –
(A) भट्टनायक
(B) भट्टलोल्लट
(C) शंकुक
(D) अभिनवगुप्त
→ ‘अनुमितिवाद’ के प्रतिपादक हैं –
(A) भट्टनायक
(B) भट्टलोल्लट
(C) शंकुक
(D) अभिनवगुप्त
→ रस सिद्धान्त के अन्तर्गत ‘साधारणीकरण’ की व्याख्या करने वाले सर्वप्रथम आचार्य हैं –
(A) भट्टनायक
(B) भरतमुनि
(C) भट्टलोल्लट
(D) अभिनवगुप्त
→ आचार्य अभिनवगुप्त ने भरतमुनि के रससूत्र में प्रयुक्त ‘निष्पत्ति’ शब्द का सही अर्थ ग्रहण किया है –
(A) भोज्य – भोजक संबंध
(B) भुक्ति
(C) व्यंग्य – व्यंजक संबंध
(D) अभिव्यक्ति
→ निम्न में से ‘कलाप्रतीतिवाद’ है –
(A) उत्पत्तिवाद
(B) अनुमितिवाद
(C) भुक्तिवाद
(D) अभिव्यक्तिवाद
→ रस – निष्पत्ति में आनंदवर्धन के ध्वनि – सिद्धान्त को प्रतिष्ठापित करने वाले विद्वान हैं –
(A) भरतमुनि
(B) अभिनवगुप्त
(C) भट्ट नायक
(D) शंकुक
→ रस – निष्पत्ति में भोजकत्व की अवधारणा को निरस्त कर ‘व्यंजना की अवधारणा’ स्थापित करने वाले विद्वान हैं –
(A) भरतमुनि
(B) अभिनवगुप्त
(C) भट्ट नायक
(D) शंकुक
→ ‘सहृदयों के अंत: करण में कुछ भाव नित्य वासना व संस्कार रूप में विद्यमान रहते हैं। सहृदय में स्थित वासना रूपी स्थायी भाव उद्बुद्ध अर्थात जाग्रत हो जाते हैं। ये जाग्रत स्थायी भाव ही सामाजिक को रस की अनुभूति कराते हैं।’ उक्त कथन के प्रतिपादक हैं –
(A) भरतमुनि
(B) अभिनवगुप्त
(C) भट्ट नायक
(D) भट्ट – लोल्लट
→ ‘‘सत्वोद्रेक: अखण्डस्वप्रकाशानंद चिन्मय:।
वेद्यान्तरस्पर्शशून्य: ब्रह्मानंद सहोदर:।।
लोकोत्तरचमत्कारप्राण: कैश्चिद् प्रमातृभि:।
स्वाकारवदभिन्नत्वेनायमास्वाद्यते रस:।।’’
रस का उक्त स्वरूप प्रतिपादित करने वाले विद्वान हैं –
(A) आचार्य भरतमुनि
(B) आचार्य मम्मट
(C) आचार्य विश्वनाथ
(D) आचार्य पंडितराज जगन्नाथ
→ निम्न में से रस का स्वरूप नहीं है –
(A) रस सत्वोद्रेकमय है
(B) रस वेद्यान्तर स्पर्श शून्य है
(C) रस स्वाकारवत् है
(D) रस ब्रह्मानंद सहोदर है
→ आचार्य भरतमुनि के अनुसार रस के प्रमुख अवयव माने गये हैं –
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
→ रसोत्पत्ति के कारण कहलाते हैं –
(A) विभाव
(B) अनुभाव
(C) संचारी भाव
(D) स्थायी भाव
→ विभाव कितने प्रकार के होते हैं–
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) आठ
→ ‘‘एक ओर अजगरहिं लखि, एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीचि ह्वै, पर्यो मूर्च्छना खाय।।’’
प्रस्तुत पद में आलंबन विभाव है –
(A) मृगराय
(B) अजगरहिं
(C) उक्त दोनों
(D) बटोही
→ रसोत्पत्ति के समय आलंबन विभाव (आश्रय) के द्वारा प्रकट की जाने वाली चेष्टाएँ कहलाती हैं –
(A) विभाव
(B) अनुभाव
(C) संचारी भाव
(D) स्थायी भाव
→ संचारी भावों की कुल मान्य संख्या है –
(A) दो
(B) चार
(C) आठ
(D) तैंतीस
→ अनुभाव कितने प्रकार के होते हैं –
(A) दो
(B) चार
(C) आठ
(D) तैंतीस
→ सात्विक अनुभावों की कुल संख्या है –
(A) दो
(B) चार
(C) आठ
(D) तैंतीस
→ ‘स्वेद/वेपथु’ हैं –
(A) विभाव
(B) अनुभाव
(C) संचारी भाव
(D) स्थायीभाव
→ ‘रोमांच’ है –
(A) आलंबन विभाव
(B) उद्दीपन विभाव
(C) कायिक अनुभाव
(D) सात्विक अनुभाव
→ ‘अरे वह प्रथम मिलन अज्ञात, विकसित मृदु उर पुलकित गात।’ पद में कौनसा अनुभाव है –
(A) वेपथु
(B) रोमांच
(C) स्तम्भ
(D) प्रलय
→ किस विकल्प में ‘वेपथु’ अनुभाव है –
(A) देखि सियमुख अति सुख पावा, ह्रदय सराहत वचन न आवा
(B) बिबरन भयेउ निपट नर पालू। दामिनी हनेउ मनहुँ तर तालु।।
(C) चिबुक हिलाकर छोड़ मुझे फिर मायावी मुसकाया। हुआ नया प्रस्पंदन उर में पलट गयी वह काया।।
(D) जो जहँ सुनह धुनइ सिर सोई । बड़ विषाद नरहि धीरज होईं।।
→ ‘छल’ नामक संचारी भाव की उद्भावना प्रकट करने वाले विद्वान हैं –
(A) केशवदास
(B) देवकवि
(C) आचार्य रामचंद्र शुक्ल
(D) आचार्य मतिराम
→ ‘विवाद’ एवं ‘आधि’ नामक संचारी भावों की उद्भावना प्रकट करने वाले विद्वान हैं –
(A) केशवदास
(B) देवकवि
(C) आचार्य रामचंद्र शुक्ल
(D) आचार्य मतिराम
→ किस विकल्प में ‘निर्वेद’ संचारी भाव नहीं है –
(A) ‘अब या तनहिं राखि का कीजै। सुन री सखि !
श्यामसुदर बिनु, बाँटि विषम विष पीजै।।’
(B) ‘सीचु सुमंत्रु विकल दु:ख दीना। धिक् जीवन रघुवीर विहीना।।’
(C) ‘भजन कह्यो ताते भज्यौ, भज्यौ न एकौ बार।
दूरि भजन जाते कंह्यौ, सो तैं भज्यौ गँवार।।’
(D) ‘मुझे राज्य का खेद नहीं, राम भरत में भेद नहीं।
मझली बहन राज्य ले लेवे, उसे भरत को दे देवें।।’
→ संचारी भावों को ‘सुखात्मक, दु:खात्मक, उभयात्मक व उदासीन’ इन चार भागों में विभाजित करने वाले विद्वान हैं –
(A) केशवदास
(B) देवकवि
(C) डॉ. राकेश गुप्त
(D) आचार्य रामचंद्र शुक्ल
→ डॉ. राकेश गुप्त के अनुसार ‘शुद्ध भाव या मनोविकारों’ की कुल संख्या मानी गई है–
(A) चौदह
(B) चार
(C) पाँच
(D) दस
→ ‘वात्सल्य’ को भाव रूप में मान्यता देने वाले सर्वप्रथम विद्वान हैं –
(A) भरतमुनि
(B) मम्मट
(C) विश्वनाथ
(D) पंडितराज जगन्नाथ
→ ‘वात्सल्य’ को दसवें रस के रूप में मान्यता देने वाले सर्वप्रथम विद्वान हैं –
(A) मम्मट
(B) भरतमुनि
(C) विश्वनाथ
(D) पंडितराज जगन्नाथ
→ ‘भक्ति’ को ग्याहरवें रस रूप में मान्यता देने वाले सर्वप्रथम विद्वान हैं –
(A) मम्मट
(B) भरतमुनि
(C) विश्वनाथ
(D) पंडितराज जगन्नाथ
→ साहित्य में रसों की कुल मान्य संख्या है –
(A) आठ
(B) नौ
(C) दस
(D) ग्यारह
→ हिन्दी साहित्य में रसों की कुल मान्य संख्या है –
(A) आठ
(B) नौ
(C) दस
(D) ग्यारह
→ निम्न में से रस व स्थायीभाव के संदर्भ में असुमेलित विकल्प हैं –
(A) करुण – शोक
(B) रौद्र – क्रोध
(C) अद्भुत – जुगुप्सा
(D) शांत – शम
→ निम्न में से रस व देवता के संदर्भ में असुमेलित विकल्प है –
(A) वीर – महेन्द्र
(B) वीभत्स – महाकाल
(C) शांत – विष्णु
(D) अद्भुत – गन्धर्व
→ निम्न में से रस व वर्ण के संदर्भ में असुमेलित विकल्प हैं –
(A) श्रृंगार – श्याम
(B) करुण – कपोत
(C) वीभत्स – नील
(D) शांत – पीत
→ निम्न में से किस रस के अधिष्ठाता ब्रह्मा माने जाते हैं –
(A) वीर
(B) भयानक
(C) वीभत्स
(D) अद्भुत
→ कवि भवभूति ने किस रस को एकमात्र रस रूप में मान्यता प्रदान की है –
(A) श्रृंगार
(B) करुण
(C) हास्य
(D) वीर
→ निम्न में से रसराज है –
(A) शृंगार
(B) करुण
(C) हास्य
(D) वीर
→ आचार्य भोजराज ने किस रस को एकमात्र रस रूप में मान्यता प्रदान की है –
(A) शृंगार
(B) करुण
(C) हास्य
(D) वीर
→ निम्न में से वियोग की मान्य तीन स्थितियों में शामिल नहीं है –
(A) पूर्वराग
(B) अभिलाषा
(C) मान
(D) प्रवास
→ वियोग की कुल कितनी दशाएँ मानी जाती हैं –
(A) दो
(B) तीन
(C) आठ
(D) दस
→ ‘चिन्ता, स्मृति, उन्माद, प्रलाप’ ये सब हैं –
(A) संयोग की स्थितियाँ
(B) संयोग की दशाएँ
(C) वियोग की स्थितियाँ
(D) वियोग की दशाएँ
→ प्रिय व मेरा प्राण प्यारा कहाँ है,
दुख जल निधि में डूबी का सहारा कहाँ है।।
(A) शान्त
(B) करुण
(C) रौद्र
(D) शृंगार
→ हा राम! हा प्राण प्यारे!
जीवित रहूँ किसके सहारे?
(A) करुण
(B) रौद्र
(C) वीभत्स
(D) वीर
→ करि चिक्कार घोर अति धावा बदुन पसारि।
गगन सिद्ध सुर त्रासित हा हा हेति पुकारि।।
(A) करुण
(B) भयानक
(C) अद्भुत
(D) वीभत्स
→ हिमाद्रि तुंग शृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध, भारती।
स्वयं प्रभा समुज्जवला स्वतन्त्रता पुकारती।।
(A) भयानक
(B) हास्य
(C) वीर
(D) शृंगार
→ अटपटी उलझी लताएँ,
डालियों को खींच लाएँ,
पैर को पकड़ें अचानक,
प्राण को कस लें, कँपाएँ,
साँप की काली लताएँ।
(A) वीभत्स
(B) शृंगार
(C) रौद्र
(D) अद्भुत
→ मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।
(A) शान्त
(B) शृंगार
(C) करुण
(D) हास्य
→ अंखियाँ हरि दरसन की भूखी।
कैसे रहें रूप रस राँची ए बतियाँ सुनि रूखीं।।
(A) संयोग शृंगार रस
(B) वीर रस
(C) वियोग शृंगार रस
(D) शान्त रस
→ अति मलीन, वृषभानु कुमारी।
अधमुख रहित, उधर नहिं चितवत्,
ज्यों गथ हारे थकित जुआरी।
छूटे चिकुर बदन कुम्हिलानों, ज्यों
नलिनी हिसकर की मारी।।
(A) हास्य
(B) करुण
(C) विप्रलम्भ शृंगार
(D) संयोग शृंगार
→ जौ तुम्हारि अनुसासन पावौं, कंदुक इव ब्रह्मण्ड उठावों।
काचे घट जिमि डारों फोरी, सकउँ मेरु मूसक जिमि तोरी।।
(A) शान्त
(B) अद्भुत
(C) वीर
(D) रौद्र
→ स्थायी भावों की संख्या कुल कितनी है?
(A) नौ
(B) दस
(C) ग्यारह
(D) बारह
→ काव्य में कितने रस माने जाते हैं?
(A) छ:
(B) सात
(C) नौ
(D) दस
→ काव्य के आस्वादन से जो आनन्द प्राप्त होता है, उसे क्या कहते हैं?
(A) अलंकार
(B) छन्द
(C) उपसर्ग
(D) रस
→ रस के कितने अंग होते हैं?
(A) दो
(B) चार
(C) पाँच
(D) छ:
→ करुण रस का स्थायी भाव क्या है?
(A) विस्मय
(B) शोक
(C) भय
(D) क्रोध
→ शृंगार रस का स्थायी भाव क्या है?
(A) उत्साह
(B) शोक
(C) ह्रास
(D) रति
→ जुगुप्सा कौन से रस का स्थायी भाव है?
(A) शान्त रस
(B) करुण रस
(C) अद्भुत रस
(D) वीभत्स रस
→ शान्त रस का स्थायी भाव क्या है?
(A) जुगुप्सा
(B) क्रोध
(C) शोक
(D) निर्वेद
→ विस्मय स्थायी भाव किस रस में होता है?
(A) हास्य
(B) शान्त
(C) अद्भुत
(D) वीभत्स
→ सर्वश्रेष्ठ रस किसे माना जाता है?
(A) रौद्र रस
(B) शृंगार रस
(C) करुण रस
(D) वीर रस
→ ‘शान्त रस’ की उत्पत्ति कब होती है?
(A) संसार से वैराग्य होने पर
(B) क्रोध भाव दर्शाने के बाद
(C) घोर विनाश के पश्चात्
(D) भय की स्थिति उत्पन्न होने पर
→ कवि बिहारी मुख्यत: किस रस के कवि हैं?
(A) करुण
(B) भक्ति
(C) शृंगार
(D) वीर
→ रौद्र रस का स्थायी भाव क्या है?
(A) भय
(B) विस्मय
(C) क्रोध
(D) शोक
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